श्री साईतीर्थम | आज्ञा : सेवा

श्री साईदास बाबा

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भारतवर्ष के वैदिक काल की उस भूली बिसरी गुरु शिष्य परंपरा की पुनार्स्तापना हेतु दिव्यालोकित, परम तेजस्वी, महायोगी, भक्तो एवं शिष्यों की समस्त (दैहिक, दैविक, भौतिक, आध्यात्मिक) को दूर करने में परं समर्थ प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद श्री साईदास बाबा जी की अविर्भाव 12 अक्टूबर 1945  में क्वांर की नवदुर्गा की षष्ठी तिथि को दोपहर 12 बजे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल शहर में हुआ था |

आपके पूज्य दादाजी श्री चुन्नीलाल मिश्रा जी, जो की तत्कालीन भोपाल राज्य के राज ज्योतिषी थे, तथा देवी माँ के परं भक्त थे, माँ दुर्गा उनकी इष्ट थी | उनकी प्रार्थना एवं तपस्या ही आपके भागुवंशी कुल में आने की भूमिका बनी | आपके पिता श्री बाबूलाल मिश्रा तथा मत श्रीमती शांतिदेवी मिश्रा कर्त्तव्यपरायण, धर्मनिष्ठ, सद्गृहस्थ थे |

जिनकी झलक मात्र कर लेने से मनुष्यों के ह्रदय में एक प्रकार के प्रेम का आकर्षण सहसा ही उत्पन्न हो जाता हो, तथा थोड़ा सा संपर्क प्राप्त होने पर दीर्घकालीन घनिष्ठ संबंधो से मिठास महसूस होने लगे, जिनके दृष्टिपात से साधक में आनंद के भाव उत्पन्न हो और वो समाधि में प्रवेश कर जाए, जिनके स्पर्श मात्र से  रोगियों के रोग दूर हो जाते हो, उनका सत्संग अवश्य ही आनंददायी है | शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के पूर्व जन्मों के संबंधो एवं कर्मो के संस्कारों के उदय होने पर ही ऐसे भक्त या शिवत्व रुपी सहज, स्वाभाविक समर्पण के भाव मनुष्य के अन्दर उत्पन्न होते है, जब वो किसी दिव्या महापुरुष, गुरु, संत या फकीर के संपर्क में आ जाता है | भारतवर्ष की उसी महान ऋषि परंपरा के सशक्त प्रतिनिधि पूज्यपाद श्री साईदास बाबाजी का वास्तविक जॆएवन परिचय तो उनके द्वारा लिखे महान ग्रंथो का अध्ययन करने से होगा (ओंकार विज्ञान, साई सेवा साधक, श्री आदिगुरू चरणोद् भव कवच इत्यादी) या 7 वर्ष से 12 वर्ष तक के उन हजारों बच्चो से मिलेगा जिन्हें उनके द्वारा दिव्य दृष्टि प्राप्त है जो वैदिक काल में ऋषियों को थी या कृष्णकाल में अर्जुन या संजय को प्रदान की गयी थी | उन लाखो लोगो से मिलना होगा जिनकी भौतिक जगत की समस्याओ का हल कल्पवृक्ष की तरह साई अवतारों की श्रृंखला में अपनाई गयी शिर्डी की द्वारिकामाई की धूनी की विभूति की छोटी छोटी पुडियाओं से करते रहते है और बदले में एक ही वास्तु मांगते है – सरला भक्ति द्वारा संतान भाव से बिना शर्त के पूर्ण समर्पण | हमें उन लोगो से भी मिलना होगा जो उनके द्वारा बताई गयी ध्यान – पद्धति को अपनाकर गृहस्थ जीवन के संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आध्यात्मिक उचाईयों को प्राप्त कर रहे है |



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