श्री साईतीर्थम | आज्ञा : सेवा

शिर्डी के साई बाबा

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प्रथम अवतार शिर्डी के साई बाबा ने भरद्वाज गोत्र में उत्पन्न गंगा भवाद व उनकी पत्नी देवगिरी अम्मा की तीसरी संतान के रूप में जन्म लिया परन्तु उनके जन्म के साथ ही मत पिता ने संन्यास ले लिया इसलिए एक सूफी फ़क़ीर व उनकी पत्नी ने आपका पालन पोषण किया था | महाराष्ट्र के शिर्डी गाँव जिला अहमदनगर तालुका कोपरगाँव में सं 1851 में सर्वप्रथम १६ वर्ष के बालक के रूप में प्रकट हुए | दो माह रहने के बाद कही चले गए | सं 1858 में ग्राम धूम्खेरा के चंदू पटेल के भतीजे की बरात के साथ दोबारा शिर्डी पहुंचे और उसके बात 60 वर्षो तक वही रहे | आप शिर्डी की एक टूटी फूटी मस्जिद में रहने लगे और उसे “द्वारिका माई” का नाम दिया | यहाँ हिन्दुओ की तरह हनुमान जी का झंडा फहराते तथा चौबीसों घंटे धूनी जलाया करते थे | साथ ही मुसलमानों की तरह सर पे कपडा (कफनी) बांधे रहते थे | इस धूनी की विभूति  (राख) से वे मनुष्यों के रोग – शोक इत्यादी दूर किया करते थे | हिन्दुओ से सलाम तथा मुसलमानों से राम-राम किया करते थे |

सर्वधर्म समभाव व वसुधैव कुटुम्बकम के जीते जागते उदाहरण साई बाबा अपने अति विलक्षण तरीके से मानवता को प्रेम के अटूट बंधन में बाँधने का गूढ़ मंत्र अक्सर बुदबुदाते रहते थे 

” सबका मालिक एक”

आपके समकालीन सद्गुरु कोटि के मुसलमान संत मेहर बाबा ने अपनी पुस्तक “गॉड स्पीकन” में लिखा है – “मई इस बात का चश्मदीद गवाह हूँ की शिर्डी के साई बाबा द्वितीय विश्व युद्ध के संचालक थे | ये उनके अवतरण की एक और भूमिका थी|

15 अक्टूबर 1918 में आपने दशहरे, मंगलवार, मुहर्रम, बुध्ह जयंती के दिन शिर्डी में दक्षिण की तरफ मूंह कर के समाधी ले ली | समाधी पूर्व कहे गए महावाक्य “ये मत समझना मई चला गया हूँ, मै सदैव विराजमान हूँ एवं मेरी अस्थियाँ मेरे भक्तो से बात करेंगी, उनकी समस्त परेशानियों को दूर कर देंगी |” आज भी अक्षरशः सत्य साबित हो रहे है | शिर्डी आज विश्व के समस्त धर्मावलम्बियों के लिए अंतरार्ष्ट्रीय तीर्थ बन गया है |



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