श्री साईतीर्थम | आज्ञा : सेवा

श्री साईदास बाबा का सन्देश

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गुरु परंपरा के अंतर्गत माँ नर्मदा जी के पावन तट पर माँ नर्मदा स्वयं श्री साईनाथ महाराज, विनायक गणपति एवं भक्त संरक्षक हनुमान जी के साथ विराजित होने जा रही है | आने वाले समय में यहाँ अनेक महान आत्माए, महापुरुष, दुखी निराश रोगी सभी साई माँ के संरक्षण में अभय प्राप्त करेंगे | 

जबाली ऋषि की महान तपःस्थली के नाम पर प्रख्यात सुशोभित जबलपुर नामक ये शहर धन्य है जहाँ माँ नर्मदा अपने बेटे – बेटियों का पाप कलुष धो कर उन्हें अभय प्रदान करती है |

मई जबलपुर में नहीं अपितु समस्त विश्व का निर्मित होने जा रहे साई माँ के इस तपोवन में आह्वान करता हूँ वे आये और शांति शक्ति भक्ति प्राप्त करे | ध्यान रहे इस पवित्र स्थली पर भक्ति से काम चलेगा युक्ति से नहीं क्योंकि यह स्थान शक्ति का है व्यक्ति का नहीं |

अब एक प्रश्न है की साई धाम की स्थापना नर्मदा तट पर ही क्यों? उत्तर के लिए हमें नर्मदा एवं कुण्डलिनी शक्ति को समझना होगा |

सात दिव्या अवं पवित्र नदियों में माँ नर्मदा का भी एक नाम आता है | वस्तुतः सात पवित्र नदिया माँ गंगा का ही स्वरुप है | गंगा को भागीरथ लाये इसलिए भागीरथी गंगा कहलाई, यमुना कृष्ण गंगा है, सरस्वती ब्रह्म गंगा है | इसी तरह भगवन शिव के पसीने के रूप में यह भगवती निकलकर संपूर्ण ब्रह्माण्ड को फलांगती हुई ये माता ब्रह्माण्ड के मध्य से प्रकट हुई | इसी तरह कुण्डलिनी की शक्ति नर देह में रीढ़ की हड्डी के मध्य चलती हुई मस्तिष्क रूपी ब्रह्माण्ड के मध्य में जाकर सहस्त्रार चक्र के मध्य में बैठे हुए शिव में लआय हो जाति है | दोनों ही स्थिति शिव सानिध्य व ब्रह्माण्ड के मध्य है | वस्तुतः नर + मादा = नर्मदा शिव के निराकार रूपी देह से प्रकट होने के कारन ये नर्मदा है | वस्तुतः ये शिव गंगा है | कुण्डलिनी शक्ति सहस्त्रार के मध्य पूर्ण चैतन्य एवं जाग्रत अवस्था में शिव से मिल जाती है |

कहा जाता है की नर्मदा का कंकड़-कंकड़ शंकर है | इसीलिए “नर्मदे हर” इस शब्द का घोष किया जाता है | यहाँ “हर” का अर्थ शिव से है कुण्डलिनी शक्ति भी “हर” से मिलती है | ऋषि, योगी, मुनि, ज्ञानी, संत, गुरु, योग में स्थित होने पर मूलाधार से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण कर चक्रों का भेद करते हुए सहस्त्रार में प्रवेश करते है | अर्थात परमात्मा से प्राप्ति उनसे एकालाप होने के लिए कुण्डलिनी शक्ति के अतिरिक्त कोई माध्यम नहीं है, चाहे कोई जाने अथवा न जाने |

जब जब महायुद्ध एवं विश्वयुद्ध की संभावना त्रिकालदर्शी महापुरुषों को दिखी है, वे अपनी आश्रम एवं गुरुकुलो को छोड़कर नर्मदा के तट पर चले आये है | आपातकाल में ये भगवती तपस्वियों एवं उनके ताप, महापुरुषों एवं उनके ताप, महापुरुषों एवं उनकी महानता, गुरुओं एवं उनके गुरुत्व, भक्तो एवं उनकी भक्ति, योगियों एवं उनके योग, ज्ञानियों एवं उनके ज्ञान को अपना सरंक्षण प्रदान कर उन्हें विश्व यद्ध, अणु परमाणु युद्ध से उत्पन्न विभिषिकाओ तथा वायुमंडल में उत्पन्न विभात्सम एवं भयानक राक्षसी पाशविक नारकीय एवं महाभ्रष्ट प्रदूषित वातावरण से उनके आश्रय में आई महान आत्माओ अथवा साधारण अज्ञानी बालको की माँ सदैव रक्षा करती है |

चयनित स्थान पर माँ धनुषाकार है जो तपस्या के लिए श्रेष्ठ स्थान है और कुर्माकार यह पहाड़ी सिद्ध पीठ का ही रूपांतरण है | इस स्थान पर कुछ ऐसे सिद्ध और योगी उपस्थित हुए है जिन्हें कोई विरला ही जान सकता है | योगिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, सात्विक, वैदिक सभी दृष्टियों से यह सिद्ध स्थली एन समस्त शुभ लक्षणों से ओतप्रोत है जिनका वर्णन विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथो में भी है |



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