श्री साईतीर्थम | आज्ञा : सेवा

साई सेवा वाहिनी

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संस्था के साई विभाग “साई सेवा वाहिनी” से श्री सीदस बाबा ने सेवा को एक नया आयाम दिया और कहा ककी यदि तुमसे कोई साधना, तपस्या, जप, ताप इत्यादि नहीं होता तो चिंता न करो, तुम मेरी तरह भगवान् श्री सत्य साई बाबा के आदर्श वाक्य “मानव सेवा ही माधव सेवा है” को ध्यान में रखते हुए सेवा के किसी भी अवसर को हाथ से जाने मत दो ! 

अगर तुम “मन में राम, हाथो में सेवा काम” का अक्षरशः पालन कर पाए तो मई तुम्हे आत्म साक्षात्कार दे दूंगा | अपने सेवको को समाज में सेवा के तीन क्षेत्र देये है, तथा एक सूत्र दिया है  

1. ग्रामोत्थान 

२. आदिवासी उत्थान 

३. श्रमिकोत्थान 

सूत्र है की ग्रामोत्थान + आदिवासी उत्थान + श्रमिकोत्थान बराबर आत्मोत्थान | इन्ही सिद्धांतो को सामने रख कर अनेक वर्षो से भारत के विभिन्न प्रान्तों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई धर्म के अनुयायी पूज्य बाबा जी द्वारा सेवा व्रत से दीक्षित हो शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एबम चिकित्सीय सेवा कार्यो  द्वारा स्वयं का एवं समाज का उठान कर रहे है | आपका कहना है की सेवा एक अवसर है अधिकार नहीं – इस बात का ध्यान रखते हुए सेवा करे क्योंकि साई अवतारों की श्रंखला में साई पूजा करते हाथो की जग सेवा करते हाथो को जल्दी थाम लेते है |

संस्था के ये विभिन्न विभाग संरंचना, कार्य विभाजन इत्यादि की दृष्टि से अलग-अलग दीखते है पर बाबा जी ने अपने सरल प्रेम, कठोर अनुशासन तथा कुशल संचालन के द्वारा उन्हें एक सूत्र में उसी तरह पिरो रखा है जिस तरह एक शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग होते हुए भी पूर्ण तालमेल और आपसी सहयोग के द्वारा शरीर के विभिन्न क्रियाकलाप पूर्ण दक्षता के साथ संपादित करते है |

इस तरह आध्यात्म जगत के जिज्ञासुओ, साधको, सेवको, अन्वेशाको के प्राणधार श्री साई दास बाबा सबसे कहते है की – “स्वयं को ईश्वर के भोजन के रूप में प्रस्तुत करो | जब स्वयं को ईश्वर का भोजन बना दोगे तो जो शेष उत्शिष्ट बचेगा वह ईश्वर का प्रसाद होगा | अब तुम जो बचे हो, वो ईश्वर का प्रसाद है, जाओ और इस प्रसाद को समस्त भू मंडल में वितरित करो | यही ज्ञान, भक्ति, कर्म और सेवा के तत्व का निचोड़ प्रेम योग ही |”

जो साधक ईश्वर से अपने लिए कुछ नहीं मांगता वो संसार को सब कुछ दे सकता है |



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